प्रार्थनाष्टक
शांत चित्त प्रज्ञावतार जय, दया-निधान सांईनाथ जय,
करुणा सागर सत्यरूप जय, मयातम संहारक प्रभु जय.
जाति-गोत्र-अतीत सिद्धेश्वर, अचिन्तनीयं पाप-ताप-हर,
पाहिमाम शिव पाहिमाम शिव, शिरडी ग्राम-निवासिय केशव.
ज्ञान-विधाता ज्ञानेश्वर जय, मंगल मूरत मंगलमय जय,
भक्त-वर्गमानस-मराल जय, सेवक-रक्षक प्रणतापाल जय.
सृष्टि रचयिता ब्रह्मा जय-जय, रमापते हे विष्णु रूप जय,
जगत प्रलयकर्ता शिव जय-जय, महारुद्र हे अभ्यंकर जय.
व्यापक ईश समाया जग तू, सर्वलोक में छाया प्रभु तू,
तेरे आलय सर्वह्रदय हैं, कण-कण जग सब सांई ईश्वर है.
क्षमा करें अपराध हमारे, रहे याचना सदा मुरारे.
भ्रम-संशय सब नाथ निवारें, राग-रंग-रति से उद्धारे.
मैं हूं बछ़डा कामधेनु तू, चंद्रकांता मैं पूर्ण इंदु तू,
नमामि वत्सल प्रणम्य जय, नाना स्वर बहु रूप धाम जय.
मेरे सिर पर अभय हस्त दो, चिंत रोग शोक तुम हर लो,
दासगणु को प्रभु अपनाओ, भूपति के उर में बस जाओ.
कवि स्तुति कर जोरे गाता, हों अनुकंपा सदा विधाता,
पाप-ताप दुख दैन्य दूर हो, नयन बसा नित तव सरूप हों.
ज्यों गौ अपना वत्स दुलारे, त्यों साईं मां दास दुलारे,
निर्दय नहीं बनो जगदंबे, इस शिशु को दुलारो अंबे.
चंदन तरुवर तुम हो स्वामी, हीन-पौध हूं मैं अनुगामी,
सुरसरि समां तू है अतिपावन, दुराचार रत मैं कर्दमवत.
तुझसे लिपट रहूं यदि मलयुत, कौन कहे तुझको चंदन तरु,
सदगुरु तेरी तभी बड़ाई, त्यागो मन जब सतत बुराई.
कस्तूरी का जब साथ मिले, अति माटी का तब मोल बड़े,
सुरभित सुमनों का साथ मिले, धागे को भी सम सुरभि मिले.
महान जनों की होती रीति, जीना पर हुई है उनकी प्रीति,
वही पदार्थ होता अनमोल, नहीं जग में उसका फिर तौला .
रहा नंदी का भस्म कोपीना, संचय शिव ने किया आधीन,
गौरव उसने जन से पाया, शिव संगत ने यश फैलाया.
यमुना तट पर रचाएं, वृंदावन में धूम मचाएं,
गोपीरंजन करें मुरारी, भक्त-वृनद मोहें गिरधारी.
होंवें द्रवित प्रभों करुणाघन, मेरे प्रियतम नाथ हृदयघन,
अधमाधम को आन तारियें, क्षमा सिंधु अब क्षमा धारिये.
अभ्युदय निःश्रेयस पाऊ, अंतरयामी से यह चाहूं,
जिसमें हित हो मेरे दाता, वही दीजिए मुझे विधाता.
मैं तो कटु जलहूं प्रभु खारा, तुम में मधु सागर लहराता,
कृपा-बिंदु इक पाऊं तेरा, मधुरिम मधु बन जाए मेरा.
हे प्रभु आपकी शक्ति अपार, तिहारे सेवक हम सरकार,
खारा जलधि करें प्रभु मीठा, दासगणु पावे मन-चीता.
सिद्धवृंद का तू सम्राट, वैभव व्यापक ब्रह्म विराट,
मुझमें अनेक प्रकार अभाव, अकिंचन नाथ करें निर्वाह.
कथन अत्यधिक निरा व्यर्थ है, आधार एक गुरु समर्थ हैं,
मां की गोदी में जब सुत हो, भयभीत कहो कैसे तब हो.
जो यह स्त्रोत पड़े प्रति वासर, प्रेमार्पित हो गाये सादर,
मन-वांछित फल नाथ अवश्य दें, शाशवत शांति सत्य गुरुवर दें.
सिद्ध वरदान स्त्रोत दिलावें, दिव्य कवच सम सतत बचावें,
सुफल वर्ष में पाठक पावें, जग त्रयताप नहीं रह जावें.
निज शुभकर में स्त्रोत संभालो, शुचिपवित्र हो स्वर को ढालो,
प्रभु प्रति पावन मानस कर लो, स्त्रोत पठन श्रद्धा से कर लो.
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