गांधी स्मृती राजघाट के द्वारा ‘अंतिम जन ‘ का सावरकर विशेषांक निकालने का मतलब ! महात्मा गाँधी जी की शारीरिक हत्या के बाद वैचारीक हत्या करने का प्रयास !


महात्मा गाँधीजी की हत्या का षडयंत्र पुना पॅक्ट के बाद से ही ! शुरू करने के बाद, 30 जनवरी 1948 के दिन, हिंदुत्ववादीयो ने जान से मारने के बाद ! अब उनकी वैचारीक स्तर पर हत्या के षडयंत्र की यह दुसरी कोशिश है ! पांचजन्य, आर्गनाइजर या कोई भी हिंदुत्ववादीयो के तरफसे चलाए जा रही पत्र – पत्रिका सावरकर पर विशेषांक निकालें हमें कोई आपत्ति नहीं है ! लेकिन राजघाट स्मृति के तरफसे चलाए जा रहे ‘ अंतिम जन ‘ मे सावरकर के तारीफ के काशिदे लिख कर छापने वाले लोगों की मानसिकता का एकमात्र उद्देश्य , महात्मा गांधींजी की शारीरिक हत्या करने के बाद यह वैचारिक रूप से बचे हुए गांधी जी की हत्या करने की कृती है !


क्योंकि महात्मा गाँधी और सावरकर की तुलना कौन-सी बातों पर हो सकती है ? सावरकर ने अपने जीवनकाल में स्ट्रॅटेजी के नाम पर चार बार माफी मांगने के विक्टोरिया रानी के नाम से लिखे हुए पत्र ! (पहला पत्र अंदमान में 4 जुलै 1911 के दिन जाने के तुरंत बाद 30 – 8-1911 मतलब छप्पनवे दिन , दुसरा पत्र 4-4-1913, तिसरा पत्र 1917, और चौथा पत्र 30 – 3-1920 को लिखा है !)


हालांकि जब सावरकर अंदमान जेल में बंद किए गए थे ! (चार जुलै 1911) उसके पहले से ही वहापर, अन्य राजनीतिक बंदी 148 की संख्या में पहले से ही बंद थे ! और सावरकर के यातनाओसे कही भी कम यातनाओ से वह मुक्त नहीं थे ! सावरकर 149 वे थे ! और वह एकमात्र कैदी थे, जिन्होंने अपने यातनाएं के बारे में लिखा है ! और दया याचिकाओं को भी ! और आस्चर्य की बात है ! कि वह पत्र लिखने की सलाह, गांधी जी ने दी थी ! यह बात राजनाथ सिंह जैसे जिम्मेदार राजनेता बोल रहे है ! जो कि गांधी भारत में दक्षिण अफ्रीका से 1915 में आऐ ! और सावरकर के छोटे भाई डॉ नारायण सावरकर ने 1920 में गांधी जी के साथ मुलाकात करने के बाद, उन्हें अपने भाई की अंदमान की जेल की स्थिति से अवगत कराया, और गांधी जी ने तुरंत बाद ही पत्र लिखा है ! जो उन्होंने यंग इंडिया में भी प्रकाशित किया है ! लेकिन हमारे देश के रक्षा मंत्री के पद पर बैठे मंत्री महोदय राजनाथ सिंह कहते हैं कि ” सावरकर को माफी मांगने की सलाह गांधी जी ने दी थी !” और अभितक राजनाथ सिंह ने अपनी बात पिछे नही ली है ! तो संघ परिवार के गांधी विरोधी प्रचार करने की कृती का ही पार्ट माना गया है !


अंदमान की जेल से छप्पन दिनों के भीतर, सावरकर के चारों दया के लिए लिखे गए पत्र 1911,1913, 1917 और 30 – 3 – 1920 के है ! और सबसे हैरानी की बात चारों पत्रों में अंग्रेज शासकों को अपनी दया याचिका में आश्वासन दिया है कि ” मै आजादी के आंदोलन कर रहे युवा लोगों को समझाऊंगा की अंग्रेजी हुकूमत कितनी अच्छी है ! और अंग्रेजी फौज में भर्ती करने के लिए विशेष रूप से काम करूंगा ! और किया भी !” जिस नेताजी सुभाषचंद्र बोस के उपर गांधी – नेहरू ने कैसे अन्याय किया बोलने वाले लोगों को ! मैं इस पर पुछना चाहता हूं कि ” बैरिस्टर विनायक दामोदर सावरकर ने, अंग्रेजो की फौज में भर्ती करने का काम ! नेताजी सुभाष चंद्र बोस को मददगार साबित होने के लिये किया था या ! उनके आजाद हिंद फौज से निपटने के लिए ?
महात्मा गाँधी सत्य को ही ईश्वर मानने वाले लोगों में से एक थे ! और बैरिस्टर विनायक दामोदर सावरकर ने अंदमान की जेल से बाहर आने के लिए 4 पत्रों में एक-से- बढकर एक झुठी बातें भले ही सावरकर भक्त उसे स्ट्रॅटेजी बोलते होंगे ! लेकिन 1921 से लेकर अंदमान से रत्नागिरी के गृहबंदी में और 1937 में उससे भी मुक्त करने के बाद 29 साल! 1966 तक सावरकर ( 28 मई 1983 जन्म और मृत्यु 26 फरवरी 1966 ) लगभग 83 साल की उम्र तक जियें है ! मतलब 1921 में रिहा होने के बाद 15 अगस्त 1947 के समय सावरकर की उम्र गिनकर चौसठ साल की थी ! जिसमें उन्हें 10 मई 1937 में मतलब चौपनवे साल की उम्र में ! आजादी के दस साल पहले ! रत्नागिरी के गृहबंदी से पूरी तरह से मुक्त करने बाद, उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन और जिस बटवारे के बारे में अभी हाल ही में एक किताब आई है कि Veer Savarkar THE MAN WHO COULD HAVE PREVENTED PARTITION ! मेरा सवाल है कि WHY NOT SHOULD ? किसने उन्हें रोका था ? अभिनव भारत के स्वयंसेवक तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना होकर बीस साल से अधिक समय होने के बावजूद इन दोनों संगठनोंने मिलकर और हिंदुत्व राजनीति के लिए स्थापित हिंदु महासभा नाम का राजनीतिक दल, जो बटवारे के मुस्लिम लिग के लाहोर प्रस्ताव के बाद 23 मार्च 1940 के बावजूद सिंध प्रांत, बंगाल प्रांतों में मिलिजुली सरकारों को चलाने का आधार क्या था ? उल्टा बटवारे के खिलाफ सक्त विरोध करने वाले महात्मा गाँधी जी की हत्या कर दी !


और बैरिस्टर मोहम्मद अली जिना के साथ सत्ता में साथ-साथ जाने की गुत्थियां अगर कोई हिंदुत्ववादीयो में से समझा सके तो बडी कृपा होगी ! क्या सावरकर की गृहबंदी से मुक्ति किसी शर्त पर की गई थी ? क्योंकि 9 अगस्त भारत छोडो आंदोलन में शामिल होने की बात तो बहुत दूर की है ! उल्टा मुस्लिम लिग के नेतृत्व में, बंगाल प्रांत की फजलूल रहमान की सरकार में शामिल हिंदु महासभा के प्रतिनिधि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी व्हाईसरॉय को दस मुद्दे की चिठ्ठी लिखकर बताये हैं ! “कि भारत छोडो आंदोलन वाले लोगों को कैसे – कैसे निपटा जा सकता है” ! यह सब कुछ कौन सी भारत माता की सेवा के लिए किया गया है ? अभी तक कोई भी हिंदुत्ववादीयो के तरफसे चलाए जा रही महात्मा गाँधी जी के खिलाफ बदनामी की मुहिम में शामिल लोगों के दिल और दिमाग को क्या हो गया है ?


और जिस बटवारे के लिए गांधी को जिम्मेदार मानते हुए हत्या कर दी गई ! लेकिन बटवारे के खिलाफ एक भी हिंदुत्ववादीयो में से किसी भी माई का लाल का नाम नहीं है ! जिसने हाथों में शस्त्र उठा कर विरोध किया हो ! उल्टा निहत्थे अस्सि साल के बुढे को गोली मारकर हत्या कर दी ! इसमें कौन-सी बहादुरी है ? गांधी के लिए शस्त्र मिला लेकिन बटवारे के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए नही ! और आज गांधी की हत्या करने वाले का महिमामंडन करने का प्रयास बदस्तूर जारी है ! उसके मंदिर बनाने की कोशिश कर रहे हैं ! और संसद सदस्य प्रज्ञा सिंह ठाकुर और कोई महंत ने कहा कि असली महात्मा गाँधी नही नथुराम गोडसे है ! और अंतिम जन का सावरकर विशेषांक भी उसी कडी का पार्ट है ! क्या गांधी की हत्या के बाद उनकी बची हुई विरासत को खत्म करने की साजिश तो नहीं है ?
क्योंकि 1909 से ही गांधी और सावरकर वैचारिक मतभेद प्रकट हो चुके थे ! हिंद स्वराज्य कितबका एक कारण 1906 से ही सावरकर और गांधी जी की लंडन के यात्रा के दौरान हुई चर्चाओं के जवाब में 1909 के दशहरा संमेलन के बाद अफ्रीका के लंडन से वापसी की यात्रा में जहाज पर लिखी गई किताब का शीर्षक हिंद स्वराज्य रखा है ! जिसे सावरकर ने मजाकिया अंदाजमे ‘ मारो काटो का पंथ ‘ बोलकर संभावना की है ! और आज संपूर्ण विश्व गांधी जी की उस किताब में दिए गए इशारोपर गंभीर रूप से चिंतन-मनन कर रहा है !


उल्टा पाकिस्तान की मांग ( 23 मार्च 1940 का मुस्लिम लिग का लाहोर प्रस्ताव ) करने वाली मुस्लिम लिग के साथ, सिंध से लेकर बंगाल तक ! 1942 के भारत छोडो आंदोलन के कारण कांग्रेस की अनुपस्थिति में, प्रांतीय सरकारों में मुस्लिम लिग के साथ मिलिजुली सरकारो में हिंदु महासभा थी ! और जिसके नेता बैरिस्टर विनायक दामोदर सावरकर और श्यामा प्रसाद मुखर्जी लोग थे ! और मुस्लिम लिग के बैरिस्टर मोहम्मद अली जिना साहब ! क्योंकि सावरकर ने अपने इंग्लैंड के वास्तव्य में ही हिंदु और मुसलमान दो राष्ट्रो का सिंद्धांतों को कॉईन करने की शुरुआत की थी (1906) ! यह बात उनके छोटे भाई डॉ. नारायण दामोदर सावरकर ने हिंदुत्व नामकी किताब का , मराठी अनुवाद करने के बाद अपनी भूमिका में लिखी है !
सावरकर के इंग्लैंड में पढाई करने के लिए जाने का साल में 1906 से 1911 में अंदमान जेल के अंदर जाने के पहले का कुल पांच सालों का हिस्सा छोड़ दें तो ! सावरकर के अंदमान जेल के अंदर के दस साल के बाद, 1966 तक ! हिंदुत्ववादी प्रचार प्रसार करने के अलावा कौन-सी गतिविधियों में शामिल थे ? और उसी हिंदुत्ववादीयो के वर्तमान शासन में गांधी जी की हत्या के अलावा, उनके विचारों को खत्म करने की साजिश का ही भाग है ! ‘अंतिम जन’ का सावरकर विशेषांक !
यह है सावरकर ने लिखे हुए माफी नामों की कुछ झलकियां ! ” अंत में, हुजूर, मैं आपको फिर से याद दिलाना चाहता हूं कि आप दयालुता दिखाते हुए सजा माफी की मेरी 1911 में भेजीं गई याचिका पर पुनर्विचार करें, और इसे भारत सरकार को फारवर्ड करने की अनुशंसा करें.


भारतीय राजनीति के ताजा घटनाक्रमों और सबको साथ लेकर चलने की सरकार की नितियो ने संविधानवादी रास्ते को फिर से खोल दिया है. अब भारत और मानवता की भलाई चाहने वाला कोई भी व्यक्ति, अंधा होकर उन कांटों से भरी राहपर नहीं चलेगा, जैसा कि 1906 – 07 की नाउम्मीदी और उत्तेजना से भरे वातावरण ने हमें शांति और तरक्की के रास्ते से भटका दिया था.
इसलिए अगर सरकार अपनी असिम भलमनसाहत और दयालुता में मुझे रिहा करती हैं, तो मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि मैं संविधानवादी विकास का सबसे कट्टर समर्थक रहूंगा और अंग्रेजी सरकार के प्रति वफादार रहुंगा, जो कि विकास की सबसे पहली शर्त है.


जबतक हम जेल में हैं, तबतक महामहिम के सैकड़ों – हजारों वफादार प्रजा के घरों में असली हर्ष और सुख नहीं आ सकता, क्योंकि खून के रिश्ते से बड़ा कोई रिश्ता नहीं होता. अगर हमें रिहा कर दिया जाता है, तो लोग खुशी और कृतज्ञता के साथ सरकार के पक्ष में, जो सजा देने और बदला लेने से ज्यादा माफ करना और सुधारना जानती है, नारे लगाएंगे.
इससे भी बढकर संविधानवादी रास्ते में मेरा धर्म – परिवर्तन भारत और भारत से बाहर रह रहे उन सभी भटके हुए नौजवानों को सही रास्ते पर लाएगा, जो कभी मुझे अपने पथ-प्रदर्शक के तौर पर देखते थे. मै भारत सरकार जैसा चाहे, उस रूप में सेवा करने के लिए तैयार हूँ, क्योंकि जैसे मेरा यह रूपांतरण अंतरात्मा की पुकार है, उसी तरह से मेरा भविष्य का व्यवहार भी होगा. मुझे जेल में रखने से आपको होने वाला फायदा मुझे जेल से रिहा करने से होने वाले फायदे की तुलना में कुछ भी नहीं है.
जो ताकतवर है, वहीं दयालु हो सकता है और एक होनहार पुत्र सरकार के दरवाजे के अलावा और कहा लौट सकता है. आशा है हूजूर मेरी याचनाओ पर दयालुता से विचार करेंगे ”


वी डी सावरकर (स्रोत :आर सी मजूमदार, पीनल सेटलमेंट इन द अंडमान्स, प्रकाशन विभाग, भारत सरकार 1975)
यह याचिका 1913 में सावरकर द्वारा ब्रिटिश सरकार को भेजी गई थी ! सावरकर इन्हीं माफीनामे पर 1921 में जेल से रिहा किये गये थे ! और 1936 तक महाराष्ट्र के रत्नागिरी में गृहबंदी और ब्रिटेन की पेंशन प्राप्त रहे हैं ! और इसी समय उन्होंने अंग्रेजी सेना में भारतीय लोगों की भर्ती का काम किया है ! और इसी समय रत्नागिरी के पोस्ट आफिस में नाथूराम गोडसे के पिता का तबादला हुआ था ! तो नाथूराम उस समय सातवीं कक्षा की पढाई छोड़कर रोज सुबह सावरकर के घर जाकर, रात को सोने के पहले अपने घर वापस आता था ! और उसी नाथूराम को भरी अदालत में शपथ के साथ सावरकर कहते है! “कि मै इसे नहीं पहचानता” ! अब इस तरह के सावरकर के उपर महात्मा गाँधी जी के स्मृति समिती के मुखपत्र अंतिम जन का विशेषांक प्रकाशित करने वाले लोगों की क्या मन्शा हो सकती है ? महात्मा गाँधी जी के सत्य ही ईश्वर है ! और बैरिस्टर विनायक दामोदर सावरकर ने अंदमान की जेल से लिखें माफीनामे और कर्झन वायली से लेकर और भी हत्याओं में फांसी पर चढने वाले मदनलाल धिंग्रा से लेकर नाथूराम गोडसे तक लोगों की मौत हो गई ! लेकिन सावरकर अपनी बैरिस्टरी के दिमाग पर 83 साल की जिंदगी जीने के बाद तंग आकर अपनी इच्छा मरण ( 27 फरवरी 1966) के निर्णय तक आने की वजह भक्तों को नहीं समझ में आ रहा है ?
तो मैं बताता हूं कि यह बैरिस्टर विनायक दामोदर सावरकर के 83 साल के जीवन का सबसे बड़ा हताशा का कारण है ! कि 1911 से हिंदुत्व नामकी किताब की रचना की ! और उसी आधार पर राष्ट्र का विभाजन भी हुआ है ! और उसके लिए जितने जिम्मेदार बैरिस्टर मोहम्मद अली जिना है ! उतनेही ज्यादा जिम्मेदार, बैरिस्टर विनायक दामोदर सावरकर भी है ! और तिसरे बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी ने बटवारे के खिलाफ अपनी जान तक दे डाली !


अब मेरा पाठकों से सवाल है कि, कौन-से बैरिस्टर तीनों बैरिस्टरो में कौन सही था और कौन गलत ? और महात्मा गांधी की स्मृति समिती को शर्म आनी चाहिए कि, वह महात्मा गाँधी जी के स्मृति में शुरू की गई समिति की पत्रिका का सावरकर विशेषांक निकालते हैं ! इससे बड़ा महात्मा गाँधी का अपमान और क्या हो सकता है ? इस गलती के लिए मै स्मृति समिति के अध्यक्ष से लेकर सभी पदाधिकारियों को माफी मांगने की मांग करता हूँ !
डॉ सुरेश खैरनार 23 जुलै, 2022, नागपुर

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