फिल्म मेला, शहीद, अंदाज, आन, देवदास, नया दौर, मधुमती, यहूदी, पैगाम, मुगल-ए-आ़जम, गंगा-जमुना, लीडर तथा राम और श्याम जैसी फिल्मों के नायक दिलीप कुमार अपने शुरुआत के दिनों में ही लाखों युवा दर्शकों के दिलों की धड़कन बन गए थे. भारतीय उपमहाद्वीप के करोड़ों लोगों ने पर्दे पर उनके अभिनय को देखा है. इस अभिनेता ने रंगीन और रंगहीन (श्वेत-श्याम) सिनेमा के पर्दे पर अपने आपको कई रूपों में प्रस्तुत किया.
असफल प्रेमी के रूप में उन्होंने विशेष ख्याति पाई, लेकिन यह भी सिद्ध किया कि हास्य भूमिकाओं में भी वे किसी से कम नहीं हैं. वे ट्रेजेडी किंग भी कहलाए और ऑलराउंडर भी. उनकी गिनती अतिसंवेदनशील कलाकारों में की जाती है, लेकिन दिल और दिमाग के सामंजस्य के साथ उन्होंने अपने व्यक्तित्व और जीवन को ढाला.
महज पच्चीस वर्ष की उम्र में ही दिलीप कुमार देश के नंबर वन अभिनेता के रूप में स्थापित हो गए थे. वह शीघ्र ही राजकपूर और देव आनंद के आगमन से दिलीप-राज-देव की प्रसिद्ध त्रिमूर्ति का निर्माण हुआ. तीनों नए चेहरों ने आम सिने दर्शकों का मन मोह लिया.
दिलीप कुमार प्रतिष्ठित फिल्म निर्माण संस्था बॉम्बे टॉक़िज की उपज हैं, जहां देविका रानी ने उन्हें काम और नाम दिया. यहीं वे यूसुफ खान से दिलीप कुमार बने और उन्होंने अभिनय का गुण सीखा. अशोक कुमार और शशधर मुखर्जी ने फिल्मिस्तान की फिल्मों में लेकर दिलीप कुमार के करियर को सही दिशा में आगे बढ़ाया.
44 साल की उम्र में अभिनेत्री सायरा बानो से विवाह करने तक दिलीप कुमार ने वे सभी फिल्में की जिनके लिए आज उन्हें याद किया जाता है. बाद में दिलीप कुमार ने कभी काम और कभी विश्राम की कार्यशैली अपनाई. वैसे वे तसल्ली से काम करने के पक्षधर शुरू से थे. अपनी प्रतिष्ठा और लोकप्रियता को दिलीप कुमार ने पैसा कमाने के लिए कभी नहीं भुनाया.
इस महानायक ने अपनी इमेज का सदैव ध्यान रखा और अभिनय स्तर को कभी गिरने नहीं दिया. इसलिए आज तक वे अभिनय के पारसमणि बने हुए हैं जबकि धूम-धड़ाके के साथ कई सुपर स्टार, मेगा स्टार आए और आकर चले गए.
दिलीप कुमार ने अभिनय के माध्यम से राष्ट्र की जो सेवा की, उसके लिए भारत सरकार ने उन्हें 1991 में पद्म भूषण की उपाधि से नवा़जा और 1995 में राष्ट्रीय सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार भी प्रदान किया. पाकिस्तान सरकार ने भी उन्हें 1997 में निशान-ए-इम्तिया़ज से नवा़जा था, जो पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है.
1953 में फिल्म फेयर पुरस्कारों के शुरुआत के साथ ही दिलीप कुमार को फिल्म दाग के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया गया था. अपने जीवनकाल में दिलीप कुमार कुल आठ बार फिल्म फेयर से सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार पा चुके हैं और यह एक कीर्तिमान है जिसे अभी तक तोड़ा नहीं जा सका. अंतिम बार उन्हें वर्ष1982 में फिल्म शक्ति के लिए यह पुरस्कार दिया गया था, जबकि फिल्म फेयर ने ही उन्हें 1993 में राज कपूर की स्मृति में लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड दिया.प