france_muslimsफ्रेंच व्यंग्यात्मक मैगज़ीन शार्ली एब्दो ने वर्ष 2011 में मुसलमानों के पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद का आपत्तिजनक कार्टून प्रकशित किया था. दरअसल, यूरोप में हज़रत मुहम्मद के कार्टून के प्रकाशन का यह सिलसिला 9/11 के हमले के बाद से ही शुरू हो गया था. अब भी समय-समय पर कई देशों में ऐसे कार्टून प्रकाशित होते रहते हैं. एक अमेरिकी फिल्मकार ने प़ैगंबर पर एक बहुत ही आपत्तिजनक फिल्म बनाकर उसे यू-ट्यूब पर अपलोड किया था. उस फिल्म को लेकर पूरी दुनिया में विरोध प्रदर्शन और हिंसात्मक घटनाएं हुई थीं. लीबिया में अमेरिका के राजदूत की हत्या कर दी गई थी. 2011 में प्रकशित कार्टून की वजह से पेरिस स्थित शार्ली एब्दो के दफ्तर पर तीन तथाकथित इस्लामी आतंकवादियों ने हमला कर दिया, जिसमें मैगज़ीन के संपादक समेत 12 लोग मारे गए. उसके बाद उनमें से दो आतंकवादियों ने एक शॉपिंग कांप्लेक्स में लोगों को बंधक बना लिया. हालांकि, पुलिस कार्रवाई में दोनों आतंकवादी मारे गए और चार अन्य लोग भी अपनी जान से हाथ धो बैठे.
बहरहाल, इन हमलों के बाद फ्रांस, यूरोप और दुनिया के दूसरे देशों से कई तरह से प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं, जिनमें बहु-संस्कृतिवाद, अभिव्यक्ति की आज़ादी, अपमान करने का अधिकार, अ-प्रवासन और शरणार्थी क़ानूनों पर बहस से लेकर मुसलमानों एवं उनकी मस्जिदों पर हमले तक शामिल हैं. दरअसल, आज दुनिया सिमट कर एक वैश्‍विक गांव बन गई है. अब दुनिया के किसी खास हिस्से में होने वाली घटना का प्रभाव केवल उसी हिस्से तक सीमित रहे, यह ज़रूरी नहीं है. अगर वह घटना आतंकवाद से जुड़ी हो, तो उस पर पूरी दुनिया से प्रतिक्रियाएं आना लाजिमी है, क्योंकि आज दुनिया का शायद ही कोई हिस्सा होगा, जो आतंकवाद से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित न हो. हालांकि, फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांद ने यह कहकर कि इस घटना का इस्लाम से कुछ लेना-देना नहीं है, देश में मुसलमानों के ख़िलाफ़ होने वाले संभावित हमलों को कम करने की कोशिश की, लेकिन मुसलमान जानते थे कि इसके बावजूद उन पर हमले ज़रूर होंगे. और, वे हमले केवल फ्रांस तक ही सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि यूरोप के दूसरे हिस्सों में भी उनका विस्तार होगा.
मुसलमानों के इस भय की पुष्टि ओलांद के वक्तव्य के तुरंत बाद फ्रांस की दक्षिणपंथी पार्टी नेशनल फ्रंट की अध्यक्ष मरीन ली पेन के बयान से हो गई. ली पेन ने अपने एक इंटरव्यू में मुसलमानों से यह मांग की कि वे साबित करें कि इस्लाम पश्‍चिमी मूल्यों के अनुकूल है और मुसलमान यूरोप के धर्मनिरपेक्ष समाज में रह सकते हैं. फ्रांस में पहले से ही सार्वजानिक स्थानों पर हिजाब पहनने पर पाबंदी, हलाल गोश्त और स्कूलों की कैंटीन में सूअर का मांस अनिवार्य बनाने जैसे मुद्दों पर बहस हो रही थी. अभी हाल में ही प्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखक मीशेल वेलबेक ने अपने नए विवादास्पद उपन्यास-सबमिशन का ताना-बाना इस विषय पर तैयार किया है कि वर्ष 2022 तक फ्रांस में इस्लामी हुकूमत कायम हो जाएगी. लिहाज़ा, यह मान लेना कि यूरोप में मुसलमानों के प्रति बढ़ती नफरत (इस्लामोफोबिया) की भावना शार्ली एब्दो हमले का नतीजा है, भ्रामक हो सकती है. अलबत्ता ऐसा ज़रूर है कि इस घटना ने इसमें तेज़ी और कटुता पैदा कर दी है. खुद मुसलमान भी पहले वाली आक्रामकता छोड़कर रक्षात्मक मुद्रा में आ गए हैं. कई जगहों पर मुसलमानों ने इस घटना के विरोध में प्रदर्शन किए हैं.
जर्मनी, जहां प्रवासन विरोधी पार्टी आल्टरनेटिव फॉर डाउशलैंड (पेजिडा मूवमेंट) पहले से ही मुसलमानों के ख़िलाफ़ मोर्चा खोले हुए है, इस घटना के बाद उसकी लोकप्रियता में छह प्रतिशत का इजाफा हुआ है. और, ऐसी संस्थाओं और पार्टियों की लोकप्रियता में पूरे यूरोप में बढ़ रही है. हॉलैंड के राजनेता गीर्ट विल्डर्स, जिन पर नस्लीय हिंसा भड़काने के आरोप में मुक़दमा चल रहा है, ने एक बार फिर से यूरोप को इस्लाम मुक्त करने की बात कही है. हालांकि, स्विट्जरलैंड में पहले भी इस्लाम विरोधी प्रदर्शन और मस्जिदों पर हमले हुए हैं, लेकिन फिर भी इसे यूरोप का सबसे सहनशील देश माना जाता है. यहां भी जर्मनी के मुस्लिम विरोधी पेजिडा मूवमेंट की शाखा खुल गई है, जिसके तत्वावधान में इस देश में प्रदर्शन करने की योजना है. उसी तरह ब्रिटेन, स्वीडन, इटली जैसे देशों की अति-दक्षिणपंथी पार्टियां इस घटना का भरपूर लाभ उठाने की कोशिश कर रही हैं. अमेरिकन न्यूज चैनल फॉक्स न्यूज ने यह ख़बर प्रसारित की कि पेरिस में एक ऐसा क्षेत्र भी है, जहां कोई नहीं जा सकता और यह कि यहां पर शरिया क़ानून लागू है. हालांकि, पेरिस के मेयर ने अमेरिकी अदालत में इस न्यूज चैनल के ख़िलाफ़ मुकदमा दायर करने की बात कही है, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि इस घटना के बाद पश्‍चिम में दक्षिणपंथी ताक़तें मज़बूत हुई हैं.
सोशल मीडिया, ब्लॉगिंग साइट्स और बड़े अख़बारों के कमेंट सेक्शन में इस्लाम विरोधी कंटेंट की भरमार नज़र आती है. मिसाल के तौर पर, ब्लॉगिंग साइट स्टोरीफाई ने कुछ ऐसे ट्वीटर संदेश एकत्र करके प्रकाशित किए हैं, जो शार्ली एब्दो पर आतंकवादी हमले के बाद पश्‍चिमी देशों में इस्लामोफोबिया की नई लहर के नतीजे में सामने आए हैं. इन संदेशों में यह कहा गया है कि सभी पश्‍चिमी देश से मुसलमानों को बाहर कर देना चाहिए या उन्हें जेल भेज देना चाहिए. ट्वीटर और फेसबुक पर किल ऑल मुस्लिम्स जैसे हैश-टैग का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. यही नहीं, हॉलैंड के शहर रॉटरडैम के मेयर एवं मोरक्कों में जन्मे लेबर पार्टी के मुस्लिम नेता अहमद अबू तालिब ने एक टेलीविजन टॉक शो में कुछ इसी तरह की बात कही. उन्होंने कहा कि जिन मुसलमानों को पश्‍चिमी सभ्यता-संस्कृति पर आपत्ति है, वे अपना बोरिया-बिस्तर समेट कर कहीं और दफा हो जाएं. अबु तालिब ने कहा कि जो मुसलमान हॉलैंड में अपनी जगह नहीं बना पाते हैं, वही ऐसी स्थिति पैदा कर रहे हैं, जिसके चलते अन्य मुसलमानों को भी निर्वासन और बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है.
इस घटना को लेकर मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसात्मक कार्रवाई भी हुई है. फ्रांस में इस हमले के बाद से अब तक ऐसी 166 घटनाएं दर्ज की जा चुकी हैं, जिनमें बुर्का ओढ़ने वाली महिलाओं पर हमले, मस्जिदों के आसपास सूअर का मांस फेंकना और धमकी भरे ई-मेल भेजना आदि शामिल हैं. कुल मिलाकर इस घटना ने यूरोप में मुस्लिम विरोधी ध्रुवीकरण को और मजबूती प्रदान की है. साथ ही यह सवाल भी पैदा किया है कि क्या इस्लाम आधुनिक विचारों के अनुकूल खुद को ढाल सकता है? क्योंकि, इराक में आईएसआईएस द्वारा पश्‍चिमी देशों के नागरिकों के सिर कलम करने की घटनाएं हों या अलकायदा आतंकवादियों द्वारा बम धमाके हों या बोको हराम की नाइजीरिया में चल रही कार्रवाई, इन सबने इस्लाम को अपने घेरे में ले लिया है, क्योंकि उक्त आतंकवादी संगठन इस्लाम के नाम पर धर्म युद्ध या जिहाद करने का दावा कर रहे हैं.
जहां तक अभिव्यक्ति की आज़ादी और अपमान करने के अधिकार का सवाल है, तो इस पर राजनीतिक और सामाजिक समीक्षक दो खेमों में बंटे दिखाई दे रहे हैं. एक पक्ष का मानना है कि ये ऐसे मूल्य हैं, जिनकी सुरक्षा हर क़ीमत पर की जानी चाहिए, वहीं दूसरा पक्ष यह मानता है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी और अपमान करने के अधिकार की एक सीमा होनी चाहिए तथा इस्लाम के विरुद्ध एक विशेष धारणा (स्टीरियोटाइप) रखने पर पुनर्विचार करना चाहिए. बहरहाल, यूरोप के तक़रीबन सभी देशों में जहां मुसलमानों की एक अच्छी-खासी आबादी है, वहां की दक्षिणपंथी पार्टियों और संगठनों ने इस घटना का भरपूर लाभ उठाने की कोशिश की है. उनके निशाने पर बहु-संस्कृतिवाद और मुसलमान ही हैं.
अब शार्ली एब्दो पर हमले की बात करें, तो आतंकवादियों का दावा था कि वे इस्लाम के प़ैगंबर का सम्मान लौटने के लिए हमलावर हुए थे. लेकिन, हमले के बाद न केवल शार्ली एब्दो ने पैग़ंबर के कार्टून पुन: प्रकाशित किए, बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी कई अख़बारों ने उन्हें प्रकाशित किया और टीवी चैनलों ने अपनी ख़बरों में दिखाया. यही नहीं, मुसलमान यूरोप के देशों में दूसरे समूहों की हिंसा के शिकार बन रहे हैं. जाहिर है, शार्ली एब्दो जैसे हमले किसी भी तरह से मुसलमानों के हक़ में नहीं हो सकते. लिहाज़ा अब न केवल यूरोप और पश्‍चिमी देशों, बल्कि दुनिया के हर देश के मुसलमानों की यह ज़िम्मेदारी है कि वे इस पहलू पर संजीदगी से ग़ौर करें, अन्यथा वह दिन दूर नहीं, जबकि उन्हें पूरी दुनिया में अलग-थलग हो जाने पर मजबूर होना पड़ेगा.

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