noor-1दुनिया के आधुनिक इतिहास में एडोल्फ हिटलर एक ऐसा नाम है जिसका नाम सुनते ही आज भी लोगों के रोंगटे ख़डे हो जाते हैं. लोग द्वितीय विश्व की युद्ध की सिर्फ कल्पकना कर सकते हैं और शायद यह बात कल्पना में भी नही सोच सकते कि हिटलर की नाजी सेना के खिलाफ जासूसी का काम किया जा सकता है. लेकिन एक ऐसा एक उदाहरण हमारे देश में ही मौजूद था. भारतीय मूल की महिला जासूस नूर इनायत खान ने फ्रांस में ब्रिटेन की तरफ से हिटलर के खिलाफ न सिर्फ जासूसी की थी बल्कि उसकी सेना की नाक में दम कर दिया था. नूर को फ्रांस में उसके द्वारा किए गए काम तथा 10 महीने तक चली यातनाओं के बावजूद पूछताछ करने वालों को कोई भी राज नहीं उगलने के लिए मरणोपरांत जॉर्ज क्रॉस से सम्मानित किया गया था. वह टीपू सुल्तान की वंशज थी.
टीपू सुल्तान की वंशज का नाम सुनते ही किसी के मन में यह आशंका हो सकती है कि आखिर उनके परिवार का कोई सदस्य ब्रिटिश साम्राज्य की मदद आखिर कैसे कर सकता है. लेकिन नूर की कहानी जानने से पहले हमें कुछ और भी जानना होगा. दरअसल नूर के पिता इनायत खान ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने पश्‍चिमी देशों में इस्लाम की सूफी धारा का प्रचार किया था. उनके पश्‍चिमी देशों के भ्रमण के दौरान ही उनकी मुलाकात एक अमेरिकी महिला से हुई. नूर इनायत का जन्म 1 जनवरी, 1914 को मॉस्को में हुआ था. नूर के पिता धार्मिक शिक्षक थे, जो परिवार के साथ पहले लंदन और फिर पेरिस में बस गए थे. वहीं नूर की पढ़ाई हुई और उन्होंने कहानियां लिखना शुरू किया.
पहले विश्‍व युद्ध के बाद नूर का परिवार लंदन चला गया था. यहां पर कुछ दिनों बाद इनके पिता की मौत हो गई और उन पर इस बात की जिम्मेदारी आ गई कि परिवार का भरण पोषण कैसे किया जाए. इस समय नूर ने संगीत को ही अपने जीवन यापन का साधन बनाया. वे कहानियां भी लिखा करती थीं. वे फ्रंेच भाषा में काफी निपुण थीं. इस वजह से फ्रेंच रेडिया में भी अपना योगदान देने लगीं. इस तरह नूर ने अपने परिवार की पूरी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली थी. वे लंदन में उस घर में रहते थे जो उनके पिता को लंदन में सूफी धारा के अनुयायाी ने उपहार स्वरूप दिया था. जून 1943 में उन्हें जासूसी के लिए रेडियो ऑपरेटर बनाकर फ्रांस भेज दिया गया था. उन्होंने हिटलर के खिलाफ कई अहम जानकारियां ब्रिटेन को भेजी थीं.
द्वितीय विश्‍व युद्ध के दौना ही नूर को ब्रिटेन ने फ्रांस जासूसी के लिए भेज दिया था. वहां वे एक नर्स के रूप में काम करती थीं और ब्रिटेन को नाजियों के बारे में खुफिया जानकारी उपलब्ध कराती थीं. इस दौरान नूर के साथ भेजे सभी ब्रितानी जासूसों को नाजियों के हाथों मौत का शिकार होना प़डा था. इन सब के बावजूद भी नूर ने पीछे हटना स्वीकार नहीं किया. उन्होंने लगातार किसी तहर यह कोशिश जारी रखी जो ब्रिटेन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण साबित हो रही थीं और नाजियों के लिए बहुत ही खतरनाक. इस तरह नूर फ्रांस में इकलौती ऐसी महिला जासूस बन गई थीं जो ब्रिटेन के लिए काम कर रही थीं. वे नाजियों की मोस्ट वांटेड लिस्ट में शामिल हो गई थीं. उन्हें किसी भी तहर पक़डना नाजियों की मजबूरी बन चुकी थी. तीन महीनों तक नूर पेरिस में नाजियों को छकाती रहीं और ब्रिटेन को खुफिया सुचनाएं देने में कामयाब रहीं. लंबी लुका-छिपी के बाद जर्मन खुफिया विभाग ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. पेरिस में 13 अक्टूबर, 1943 को उन्हें जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. गेस्टापो के पूर्व अधिकारी हैंस किफर ने उनसे सूचना उगलवाने की खूब कोशिश की, लेकिन वे भी नूर से कुछ भी नहीं उगलवा सके. 25 नवंबर, 1943 को नूर इनायत खान एसओई एजेंट जॉन रेनशॉ और लियॉन के साथ सिचरहिट्सडिन्ट्स (एसडी), पेरिस के हेडक्वार्टर से भाग निकलीं, लेकिन वे ज्यादा दूर तक भाग नहीं सकीं और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. बात 27 नवंबर, 1943 की है. अब नूर को पेरिस से जर्मनी ले जाया गया. नवंबर 1943 में उन्हें जर्मनी के फार्जेज्म जेल भेजा गया. इस दौरान भी अधिकारियों ने उनसे खूब पूछताछ की, लेकिन उसने कुछ नहीं बताया. उन्हें दस महीने तक बेदर्दी से जंजीरों में बांधकर टॉर्चर किया गया, फिर भी उन्होंने अपनी जुबान नहीं खोली.
11 सितंबर 1944 को मार दी गई
बताया जाता है कि नाजियों नूर को कितनी भी प्रता़डना दी लेकिन उन्होंने अपना मुंह नहीं खोला. उन्होंने गोली मारने के पहले एक ही शब्द बोला था फ्रीडम यानी कि आजादी. इस बात की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है कि जिस नूर ने आजादी पसंद होने के बावजूद भी कैद में रहना पसंद किया. जब पेरिस में उनके साथ कई जासूसों की हत्या कर दी गई थी तब उन्हें एक मौका दिया गया था कि वे वहां से वापस आ जाएं लेकिन इस शेरदिल महिला ने ऐसा करने से मना कर दिया.
हालांकि भारतीय मूल की होने के कारण नूर ब्रिटेन औपनिवेशिक साम्राज्य की प्रबल विरोधी थीं लेकिन जब उन्होंने ब्रिटेन के लिए काम करने की ठानी तो उनका मानना था कि शायद उनके ऐसा करने से ब्रिटिश साम्राज्य की भारतीयों और भारत के प्रति धारणा में परिवर्तन हो.

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