nav-nirmit-sidhighatकेंद्र और राज्य सरकारें नदियों की सफाई और  उससे जुड़ी योजनाओं को अमलीजामा पहनाने का दावा करती रही हैं. लेकिन सच्चाई यह है कि नदियों की दशा में सुधार के लिए अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. इस तथ्य का जीवंत उदाहरण सीतामढ़ी जिले की लक्ष्मणा नदी है. तकरीबन एक दशक से इस नदी की दिशा बदलने की वजह से नदी में पानी का प्रवाह नहीं हो पा रहा है. नतीजतन शहर के मध्य से प्रवाहित होने वाली ऐतिहासिक नदी महज एक नाला बनकर रह गई है. नदी की इस दशा के लिए सरकारी व प्रशासनिक तंत्र के साथ-साथ स्थानीय जनप्रतिनिध भी जिम्मेदार हैं. लोगों का कहना है कि एक तरफ नदी के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ सरकारी कोष से लाखों रुपये नदी के सौंदर्यीकरण पर खर्च किए जा रहे हैं. नदी का लगातार अतिक्रमण हो रहा है और इस अतिक्रमण से प्रशासनिक महकमा अनजान बना हुआ है. दुर्गा पूजा के समय पिछले कई सालों से प्रतिमा विसर्जन के लिए नदी में अस्थाई बांध बनाया जा रहा है. पंपसेटों से नदी में मूर्ति विसर्जन के लायक पानी जमा किया जाता है. नगर परिषद द्वारा केमिकल डालकर पानी को साफ किया जाता है. कुल मिलाकर नदी की सफाई के नाम पर प्रत्येक वर्ष लाखों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन नदी की समस्या का स्थायी निदान नहीं निकाला जा सका और न ही इसकी कोई सार्थक पहल हो रही है. सीतामढ़ी के जिला पदाधिकारी राजीव रौशन ने पिछले वर्ष कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं की पहल पर नदी की धारा में जल प्रवाह को लेकर प्रयास किया था, लेकिन इस दिशा में अब तक कोई खास सफलता नहीं मिल सकी है. जबकि इससे पूर्व नदी की समस्या दूर करने के लिए जिले के करीब आधा दर्जन सामाजिक कार्यकर्ताओं ने धरना-प्रदर्शन किया था, लेकिन आंदोलन के दौरान प्रशासनिक स्तर समस्या के निदान के लिए आश्वासन देककर मामले को शांत करा दिया गया. अब हालत यह हो गई है कि दुर्गा पूजा समेत अन्य अवसरों पर प्रतिमा विसर्जन के लिए नदी में पानी नहीं है. सूर्योपासना का महापर्व छठ के अवसर पर लोग अपने ही दरवाजे पर गड्‌ढा खोदकर पूजा करने के लिए मजबूर हैं. कुछ दिनों पहले नदी किनारे रामघाट के समीप नगर परिषद द्वारा सीढ़ी का निर्माण कराया गया था जो लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है. नदी की इस दशा से आहत लोगों का कहना है कि नदी में पानी का प्रवाह संभव नहीं हो पा रहा है, ऐसे में लाखों रुपये खर्च कर सीढ़ी का निर्माण कराना उचित नहीं है. प्रशासन को पहले नदी में जल प्रवाह के लिए प्रयास करना चाहिए था. मुख्यमंत्री नगर विकास योजना के तहत तकरीबन 41 लाख रुपये की लागत से उक्त घाट का निर्माण कराया गया है. नदी की समस्या को गंभीरता से लेते हुए रुन्नीसैदपुर की तत्कालीन विधायक गुड्‌डी देवी ने विधानसभा में तारांकित प्रश्न के दौरान इस मामले को उठाया था. उनके सवाल के जवाब में तत्कालीन जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कहा था कि नेपाल के फुलपरासी से भारत-नेपाल सीमा तक तकरीबन 8 किमी एवं भारतीय सीमा सटे दुलारपुर ग्राम से पोसुआ पटनिया तक लगभग 15 किमी यानी कुल 23 किमी तक नदी की धारा सिल्टेड है. जिसकी वजह से नदी अपनी धारा बदलकर अघवारा समूह की नदियों में मिल गई है. उन्होंने बताया कि भारतीय क्षेत्र में नदी में गाद जमा होने की वजह से पानी का बहाव संभव नहीं है. गाद की सफाई के बाद ही नदी का जल प्रवाह संभव है. मामला अंतराष्ट्रीय होने की वजह से भारत-नेपाल जल प्लावन समिति में प्रक्रियाधीन है.

पिछले वर्ष कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने नदी की समस्या को गंभीरता से लेते हुए जमीनी कार्य प्रारंभ किया. इस अभियान में भारतीय क्षेत्र के अलावा कुछ नेपाल के सामाजिक व राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने भी भागीदारी दी. लेकिन नेपाल में शुरू राजनीतिक अस्थिरता के दौर ने नदी को जीवित करने के तमाम कवायदों पर पानी फेर दिया. नदी में फैल रहे प्रदूषण की वजह से संक्रामक बीमारियों की आशंका बढ़ती जा रही है. लोगों का कहना है कि राजनीतिक मंचों से बड़ी-बड़ी घोषणाएं करने वाले नेताओं को नदी में जल प्रवाह के लिए सार्थक पहल करनी चाहिए.

जिला प्रशासन एवंं राज्य सरकार के साथ ही केंद्र सरकार का ध्यान इस गंभीर समस्या की तरफ आकृष्ट करने की आवश्यकता है. अगर समय रहते नदी में पानी का बहाव शुरू नहीं हो सका तो इससे एक ओर जहां ऐतिहासिक नदी का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा. वहीं दूसरी ओर अतिक्रमणकारियों व भू-माफियाओं का अगला कदम नदी की जमीन होगी. नदी को बचाने के लिए सभी राजनीतिक दल के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं के अलावा सामाजिक संगठनों को एक साथ मिलकर आवाज बुलंद करने की आवश्यकता है.

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